Monday, January 25, 2010

वन्दे मातरम!!

जब भी गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस का दिन करीब आने लगता है तो जैसे ये वक्त ठहर गया हो कुछ पलों के लिए। हाथ कुछ कर नहीं पाते, आँखें नम हो जाती है, हृदय भर आता है उन शहीदों के लिए जिन्होनें अपने प्यारे देश भारत अपनी मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया .......
आज़ाद भारत में जन्म लेने से हम वह ज़ज्बात महसूस करने से वंचित रहे और हमेशा रहेंगे ........
पर आज भी कई जगह है जैसे अंडमान निकोबार की सेलूलर जेल, जलियावाला बाग़ (अमृतसर) जहाँ की दीवारें और गलियां आज भी एक जोश में चीख चीख कर कह रही हैं.....
वन्देssss....... मातरम!





वन्देssss....... मातरम!






वन्देssss....... मातरम!

अरिष्टासुर वध....


खुरते खुरदि महि धुरि, पुच्छ उठाय मेघ करी दूरी
आगे करिदोऊ विषम विषाणा, अति फ़ुफ़कार करत बलवाना।
वेगि चला यदुवर पर ऐसे, इन्द अशिन पर्वत पर जैसे
झट गहि उभय सींग बनवारी, कुछ ठकेलि ले गयो पछारी।
ठेल पेल दोऊ ओर करारे, लड़हि यथा युग गज मतवारे ।

संकलन -कवि श्री हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’की रचना से


(श्यामायण, पृ० २३५)