Thursday, May 19, 2016

निपुणता और चुनाव

 जैसे ही मैंने एक दत्तिए को एक बड़े से पानी के पात्र में से पानी पीते देखा तो मेरी हंसी रुकी नहीं और मैंने यह पल कैमरे में कैद कर लिया| पहले तो यह मटके से रिसते पानी को पीने आती थी पर अब वह इतने बड़े टब में रखे पानी को प्रयोग कर रही थी|

फिर ध्यान दे देखा तो वह पानी अपने मुंह में भर कर ले जा रही थी शायद अपना घोसला तैयार कर रही हो?
 और यह है एक सनबर्ड का घोसला| इसने तो जैसे जिद्द कर रखी थी कि घोसला तो इसी घर में बनाना है| पहले वह ग्राउंड फ़्लोर पर एक बिजली के तार पर बना रही थी| वह जितनी बार बनाती उतनी ही बार मेरा छोटा भाई उसे उजाड़ देता था| उसे डर था कि कहीं पक्षी को करेंट न लग जाए| पर यह पंछी तो जैसे अपने जिद्द में थी| वह हर बार फिर से एक आधा अधूरा घोंसला तैयार कर देती| मुझे बहुत कोफ्त हो रही थी कि उसकी मेहनत जाया हो रही है| मैंने उस बिजली के तार को ही वहाँ से हटा दिया ताकि वह दूसरी जगह का चयन करे|
पर उसने चयन किया भी तो फ़र्स्ट फ़्लोर को! वहाँ एक जगह देखकर उसने कपड़े सुखाने की रस्सी में ही अपना घोंसला तैयार कर लिया|




अब यह हमारे प्रदर्शनी के लिए रख हुआ है| न तो उसमें उसने कोई अंडे दिया न ही दूबारा उसे देखने आई| हमने भी उसे ज्यों का त्यों रहने दिया है| इस घोंसले को बाहर से देखने पर यह कचड़े जैसा थोड़ा बदसूरत सा दिखता है पर अंदर से उतना ही मुलायाम व आरामदायक मालूम होता है|  इनकी सहजता, निपुणता और उपायों को देखकर  तो शायद मानव भी शर्मा जाये|