Tuesday, March 23, 2010

रोशनी के टेपरिकॉर्ड की व्यथा


एक जमाना था जब मोहल्ले में हमारे ही टेपरिकॉर्ड (जी पापा जी के ज़माने की थी) उसका ही राज था वह मीठे मीठे गाना गाता था और हम सब आनंद लेते थे। तभी एक दिन अचानक उसका प्रतिद्वंदी आ धमका हमारे सामने वाले घर में।

जब वह गाता तो अगल- बगल के कुछ टेपरिकॉर्ड चुप हो शायद आत्मविश्वास में कुछ कमी आ गई थी

एक दिन हमने उसे किसी से बात करते सुना, ओह! यह तो अपनी व्यथा कह रहे हैं उस सामने वाले टेपरिकॉर्ड से! चलिए सुनते यह जनाब क्या कह रहे हैं?

मैं हूँ रोशनी का टेपरिकॉर्ड
लिख रहा हूँ अपना ध्वस्त रिकॉर्ड
यहाँ स्थिति मेरी ठीक नहीं है
ऊपर मेरे धूल की पर्त जमी है
ये रोशनी की बच्ची
मुझे साफ नहीं करती सच्ची मुच्ची
उसके पापा अभी दिल्ली गए थे
तीन चार दिन के लिए ठहर गए थे
मत पूछो क्या खरीदारी की Man
ले आये उसके लिए एक वॉकमैन
बस कान लगाकर सुनते रहती है उसे
हाल मेरा क्या होता है मालूम नहीं उसे

आपका ख्याल तो बाबू मोशाय रखते होंगे
आप हालत में लाख गुना बेहतर होंगे
ध्वनि नियंत्रक ठीक नहीं हो पाता
गाना ऊँचे स्वर में गा नहीं पाता
कभी कभी धुनाई हो जाती है मेरी
पेंच सारी गायब है मेरी
बस किसी तरह जिन्दा हूँ
काले टेप व सेलुटेप की मदद से सही सलामत हूँ
वैसे भी अब बुढ़ा गया हूँ
उसे क्या दोष दूँ, बस अब एक ही गीत गाता हूँ
"जाने कहाँ गए वो दिन, बजता था मैं रात और दिन..."।