Monday, January 25, 2010

अरिष्टासुर वध....


खुरते खुरदि महि धुरि, पुच्छ उठाय मेघ करी दूरी
आगे करिदोऊ विषम विषाणा, अति फ़ुफ़कार करत बलवाना।
वेगि चला यदुवर पर ऐसे, इन्द अशिन पर्वत पर जैसे
झट गहि उभय सींग बनवारी, कुछ ठकेलि ले गयो पछारी।
ठेल पेल दोऊ ओर करारे, लड़हि यथा युग गज मतवारे ।

संकलन -कवि श्री हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’की रचना से


(श्यामायण, पृ० २३५)

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎं