Friday, May 7, 2010

पानी





पानी बहती जाती है
पानी प्यास बुझाती है
आँखों से होकर
मन को हल्का कर जाती है

कभी बादलों से फिर
खेत में फसल लहलहाती है

यही सागर भी है जहाँ
सीप में ढल के मोती बन जाती है

यही कश्तियाँ, नाव और जहाज को
दरिया से मंजिल तक पहुंचाती है

कभी सर्द बर्फ है कभी गर्म भाप
ये हर शै में खुद ढल जाती है

पानी इसका कोई रंग रूप नहीं
फिर भी जिन्दगी का जरिया बन जाती है

पानी इसकी हर बूँद की कीमत है
किसी किसी को ही ये समझ आती है......

यह रचना हमारे एक मित्र नईम जी के ब्लॉग "हज़ार अशार" से ली गई है...

6 comments:

संजय भास्‍कर said...

पानी इसका कोई रंग रूप नहीं
फिर भी जिन्दगी का जरिया बन जाती है

इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

संजय भास्‍कर said...

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

संजय भास्‍कर said...

नईम जी
ढेर सारी शुभकामनायें.

RAJWANT RAJ said...

kbhi srd brf hai kbhi grm bhap wah kya bat hai
is pani ki tasir bhut kuchh ourat ki tasir se mil rhi hai
bhut achha likhti hai aap

Asha Lata Saxena said...

अच्छे भाव लिए कविता |सुंदर रचना के लिए बधाई
आशा

छत्तीसगढ़ पोस्ट said...

दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ.....बधाई.....शुक्रिया..