मन मयूरा थक रहा बादल घनघोर
आँखें देखती इस ओर तो कभी उस ओर
गरजती हुई घटा और चमकती सी बिजली
उस पर फिर चलते हुए पवन का शोर
व्याकुल ह्रदय एक ख्वाहिश संजोती रही
कि रिमझिम बूँदें बरसें इस छोर
साथ बारिश के बादल भी खींच लूं
अगर बना लूं अम्बर से धरती तक डोर
हौले- हौले टपकती मोतियों सी बूँदें
ये मौसम बन रहा धरती का सिरमौर
हर्षित हो कर नृत्य में मग्न हूँ
समस्त वातावरण हुआ आनंद विभोर
यह रचना हमारे एक मित्र नईम जी के ब्लॉग "हज़ार अशार" से ली गई है...
( http://nayeemnahi.blogspot.com/)
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11 comments:
बहोत अच्छी रचना
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
मन मयूरा नाच रहा है क्या ?
बड़ी रूमानी कविता है जिसकी हर पंक्ति में एक सुंदर सा बिम्ब झांकता है
अति सुन्दर, Roshani जी.वैसे तो हमेशा ही आपकी अभिव्यक्ति काफी अच्छी होती है पर यह तो सचमुच कमाल की है.
रचना अच्छी लगी.
Aabhar.
is tareef ke sahi hakdar Naeem ji hain jinhone mujhe is rachna ko pradrshit karne ka mouka diya.
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www.hummingwords.in
वाह रोशनी जी,
साथ बारिश के बादल भी खींच लूँ
अगर बनालूं अम्बर सेधरती तक डोर
सार्थक अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
ek umda post....
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मन मोर बनी थनगाट करे
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