झाँसी में बहुत ही संपन्न तैलकार रहा करते थे. जिनका नाम राम शाह था. उनका तेल का व्यवसाय अपनी चरम पर था. व्यवसाय के बाद सारा समय भजन पूजन यज्ञ आदि में वे लगाया करते थे क्योंकि वे जानते थे कि ईश्वर ने उन्हें जितनी विभूतियाँ दी हैं वे रामशाह के लिए नहीं वरण समस्त मानवता के लिए है. उनका सम्पूर्ण जीवन सत्कर्मों को समर्पित था. फिर भी रामशाह के जीवन का एक कोना बड़ा उदास था. उनके कोई संतान न थी लेकिन ईश्वर सबकी मनोकामना पूरी करते हैं आखिर एक दिन वह घड़ी भी आई संमत १०७३ के चैत्र कृष्ण पक्ष ११ को एक कन्या रत्न ने जन्म लिया नामकरण की बेला आई, रामशाह ने अपना निर्णय सुनाया कि मुझे यह बेटी मिली है इसलिए मै उनका नाम कर्मा रखूँगा. चन्द्रमा की सोलह कलाओं की तरह कर्म उम्र की सीढ़ियाँ देखते ही देखते पार कर गई. परिवार का धार्मिक संस्कार तो उन्हें मिला ही था इसलिए बचपने से ही भगवन जगदीश के भजन पूजन आराधना में उन्हें विशेष आनंद मिलता था.
पूर्ण -वय प्राप्त हो जाने पर कर्मा के हाथ पीले करने की धुन रामशाह को सवार हुई. ग्वालियर राज्य के नरवर के एक समृद्ध तैलकार परिवार में कर्मा की डोली पहुंची तब तक कर्मा की साधना की ख्याति झाँसी जनपद की सीमाओं को लाँघ चुकी थी. कर्मा सु- दर्शन और धनधान्य से संपन्न पति पाकर बहुत प्रसन्न तो थी लेकिन पति की आमोद प्रमोद प्रियता से किंचित दुखी रहती थी.
हमेशा की तरह वे एक दिन घर कार्य से निपट कर भगवान मुरली मनोहर को अपने स्मृति पर ला रही थी. उनके पति ने रुष्ठ स्वर में कहा- कर्मा मैं साफ़ साफ़ जानना चाहता हूँ की तुम्हें किसमें अधिक सुख मिलता है? बड़े ही शांत स्वर में कर्मा जी ने कहा-"मुझे वही काम करने में सुख मिलता है जिनसे आप प्रसन्न रहे. यही मेरा सबसे बड़ा धर्म भी है. इस धर्म की कीमत चुकाने के बाद ही और बातें आप ही आप मिल जाती हैं......" यह सोचकर कि मेरे पतिदेव मेरे उत्तर से संतुष्ट हो गए हैं कर्मा जी ने आँखें बंद कर ली और ईश्वर में धयानस्थ हो गईं. कर्मा जी के पति के मन में आया कि इनकी जरा परीक्षा ली जाये और उन्होंने भगवान कृष्ण की मूर्ति को छिपाकर अन्यत्र रखी ही थी कि आँख बंद किये ही कर्मा जी ने कहा- "ऐसे क्यों अनर्थ करते हैं प्रिये! भगवान कि प्रतिमा को उसकी ठौर में ही रख दे!" पति अवाक् थे ! उन्होंने मूर्ति जहाँ की तहां रख दी. अब उनके मन की शंका निर्मूल हुई और कर्मा की साधन के प्रति न उनका अनुराग बढ़ा अपितु उनका ह्रदय ही बदल गया. ईश्वरराधाना की ओर वे प्रवृत्त हुए. यह कर्मा की पहली जीत थी.
इसके बाद दंपत्ति युगल एक दुसरे की मनोभावना को समझते हुए प्रेम के साथ कालयापन करने लगे. कालक्रम में कर्मा माता की कोक से एक पुत्र रत्न ने जन्म लिया. कर्मा माता का मातृत्व धन्य हो गया ऐसे माहोल में कर्मा माता की परीक्षा की दूसरी घड़ी आयी .......
नरवर नरेश के प्रिय सवारी हाथी को असाध्य खुजली का रोग हो गया. राजवैद्य की नाड़ी ठंडी हो गई, रोग जाने का नाम नहीं लेता था. किसी दुष्ट ने कह दिया कि कुंड भर तेल से यदि हाथी को स्नान कराया जाये तो उसकी खुजली मिट सकती है इसमें कोई संदेह नहीं कि तेल को परम औषधि का दर्जा मिला हुआ भी है. राजा के दिमाग में यह बात चढ़ गई, पर इतना तेल कहाँ से आये? देखि न जाये पराई विभूति ऐसे लोगों की कमी किसी युग में नहीं रही किसी कलंकी ने कह दिया कि नरवर राज्य भर के तैलकारों को कुंड भरने कि राजाज्ञा प्रसारित होनी चाहिए. निदान ऐसा ही हुआ. साफ़ है कि बहुत बुरा हुआ. महीने भर तक कुंड भरा ही न जा सका. समस्त तैलिक वैश्य परिवार के सामने जीवन मरण, रोजी-रोटी का प्रश्न खड़ा हो गया. नरवर एक जागरूक सामाजिक नेता होने के नाते कर्मा के पति का चिंतित होना आवश्यक था. पति की इच्छा जन भक्त कर्मा ने प्रभु की तेरा- अंतरात्मा की पूरी आवाज उन्होंने लगा दी. तभी भक्त कर्मा के कर्ण-रंध्रों में भगवान की वाणी गूंजी.
यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवती भारत.
अभ्युथानंधर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम
परित्राणाय साधुनां, विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय, संभवामि युगे युगे
और सचमुच भगवान की लीला अपरम्पार होती है। दूसरे ही दिन यह बात सारे नगर में आग की तरह फ़ैल गई कि कुण्ड भर गया। लोगों के लिए तमाशा था लेकिनसमझदारों ने भक्त कर्मा कि जय जय कर से सारा आकाश गूंजा दिया। सारे तैलिक वैश्य समाज को महासंकट से छुटकारा मिला। भक्त कर्मा की ख्याति इस घटना से देश भर में फ़ैलने लगी। भक्त कर्मा ने पति से निवेदन किया कि हम इस नर पिशाच राजा के राज में देर तक ना रहें। निर्णय लेने भर की देर थी कि नरवर का सारातैलिक वैश्य समाज एक बारगी उठकर झाँसी चला आया।
पुण्य भूमि झाँसी तुम्हें एक बार फिर प्रणाम करूँ तब आगे कि कथा कहूँ। बहुत काल झाँसी में व्यतीत हुआ। भक्त कर्मा कि आस्था भगवान पर दृढ़ से दृढ़त्तर होतीगई। विधि का विधान किसने देखा है। कर्मा के तो भाग ही फूट गए.....
थोड़े समय की अस्वस्थता के बाद उनके पति का निधन हो गया। सारा झाँसी तैलिक समाज गहन शोक में डूब गया। भक्त कर्मा बिलखती ही रह गई और तत्कालीनप्रथा के अनुसार पति की चिता में ही आत्मदाह करने का संकल्प कर लिया। इसी समय आकाश वाणी हुई "यह ठीक नहीं बेटी! तुम्हारे गर्भ में एक शिशु पल रहा है -वक्त का इंतजार करो मै तुम्हें जग्गंनाथ पुरी में दर्शन दूंगा। " भक्त कर्मा ईश्वरीय आदेश का उल्लंघन कैसे करें।
"समय जात नहिं लागहिं बार" तीन चार वर्ष बच्चों के लालन पालन में ही लग गए। भक्त कर्मा का मन आकाशवाणी की ओर बारम्बार जाता कि भगवान के दर्शनमुझे कब होंगे? अब भक्त कर्मा के लिए कोई भी ऐसा लौलिक आकर्षण बाकि नहीं रह गया जो अपनी मायाजाल में बांध कर रख सके। निदान एक रात भयानकसन्नाटे में ही भगवान को भोग लगाने के लिए कुछ खिचड़ी रखकर वे पुरी के लिए अकेली पैदल निकल पड़ी। भक्त कर्मा कि सूझ-बुझ नहीं रही चलते चलते थककरएक वृक्ष की छायामें दूसरे दिन विश्राम करने लगी, आँख लग गई और जगी तो अपने को वे जगन्नाथपुरी में पाई, ईश्वर को उन्होंने कृतज्ञता पूर्वक स्मरण किया औरखिचड़ी का प्रथम भोग लगाने सीढियों की ओर बढ़ी। भगवान के मंदिर में उस समय पूजा हो रही थी। सीढ़ी पर पुजारी ने टोका। भक्त माता कर्मा ने कहा कि "मैंभगवान को खिचड़ी का पहला भोग लगाने बहुत दूर से आई हूँ, मुझे अन्दर जाने दीजिये"। पुजारी के माथे पर बल पड़ गए- "चल दूर हट" और एक धक्का भक्त माताकर्मा को दिया कृशकाय, थकी मंदी भक्त कर्मा माता दूर जा गिरी और फूट- फूट कर रोने लगी। भगवान! आप केवल पुजारियों की मर्जी में ही नज़र बंद कैद क्यों हैं क्याआप को सुनहले सिंहासन ही पसंद हैं? आकाशवाणी हुई- "नहीं कर्मा, मैं तो महज प्रेम का भूखा हूँ। मैं खुद मंदिर से निकल कर तुम्हारे पास आता हूँ" मठाधीशों मेंहड़बड़ी मच गई, भगवान कृष्ण कर्मा के पास आये और बोले- कर्मा देखो मैं तुम्हारी खिचड़ी खा रहा हूँ। भक्त कर्मा प्रेम से भगवान को खिचड़ी खिलाने लगी। उन्होंनेभगवान से वर माँगा-"इसी तरह आप प्रतिदिन खिचड़ी का भोग लगाया करें और मैं बहुत थक चुकी हूँ- आपके चरणों में मुझे जगह दीजिये" -यह कहकर भक्त माताकर्मा भगवान के चरणों पर गिर गई और परमधाम को प्राप्त हुई .
लेखक- स्व. डॉ. मनराखन लाल साहू ,
नेहरु नगर, भिलाई (छत्तीसगढ़)
11 comments:
भक्ति की महिमा अनन्य है
सुन्दर लेख
साधुवाद
ज़ज्बे को सलाम...लाजवाब लेखन... प्रणाम स्वीकार करे..
Adarniya roshni ji...
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
अच्छी जानकारी देती रचना |पढ़ना भट अच्छा लगा |बधाई
आशा
aap ki sabhi picture is bahot atchhe hai and my blog name is www.onlylove-love.blogspot.com
Adarniya roshni ji...
namaskar
Happy New Year
नए साल की आपको सपरिवार ढेरो बधाईयाँ !!!!
सुंदर लेख , तथापि एक शुद्धि करना चाहूँगा, गीता के श्लोक में पवित्रनाय के स्थान पर परित्राणाय होना चाहिए था.
Aarkay जी धन्यवाद :)
श्रीमती रौशनी जी,
सादर नमस्कार,
स्व. डा मनराखन लाल साहू जी द्वारा लिखित भक्त माता करमा से सम्बंधित यह लेख अत्यंत ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक है. साथ ही चित्र भी बड़ा मनमोहक है. इसे प्रकाशित करने के लिए आपका आभार.
इस लेख को साहू समाज दतान, पलारी की स्मारिका "सद्भावना सन्देश" जो प्रकाशनाधीन है, में शामिल करने का आकांक्षी हूँ... यदि आपकी अनुमति हो...
कृपया सूचित कर अनुग्रहित करेंगे....
सादर..
रामकुमार साहू
सचिव
साहू समाज दतान पलारी परिक्षेत्र
ग्राम गिर्रा पलारी 493228
जिला रायपुर छ. ग.
ई मेल: mrkspalari@gmail.com
ph. 9826198219
सादर नमस्कार,
स्व. डा मनराखन लाल साहू जी द्वारा लिखित भक्त माता करमा से सम्बंधित यह लेख अत्यंत ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक है. साथ ही चित्र भी बड़ा मनमोहक है. इसे प्रकाशित करने के लिए आपका आभार.
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